शुक्रवार, ८ ऑक्टोबर, २०१०

कसूर

हम कहते गये जो ना कहना था…
वो हर लब्जपे हमारें बस रोते गये..
कसूर तो हमारा ही था..
जो ना देखा उनकी आँखों में..
बस खुद के जख्म दिखातें रहे..
हक़िक़त तो ये थी की
पुरा दिल कुरेडा था हमने..
पर उन्होने उफ्फ भी ना किया…
और हम और घाव बनातें गये..
जब पता चला के हम ही गलत थे…
देखा सनम का हाल…
उसके बाद से जिंदगी के आखरी साँस तक..
बस खुद ही से आंखें चुराते रहे..

कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत:

टिप्पणी पोस्ट करा