रविवार, १७ जुलै, २०११

ख्वाब तो कई देख रखें हैं हमनें|
लब्ज तो कई लिख रखे हैं हमनें|
बस इंतज़ार हैं उन लम्हो का,
जब हम जी सकेंगे उन ख्वाबोंको|
इंतज़ार हैं उन्ही लोगों का,
जिनसे, कह सकेंगे इन्ही लब्जोंको|
ना जाने वो लम्हा वो लोग कब आएँगे|
हमारे दिल का ये बोझ हल्का करने,
के हम देख सके नये ख्वाबों को,
और लिख सके नये लब्जोंको|

विनायक बेलोसे

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